Kabirdas Ke Dohe कबीर दास के दोहे काफी प्रसिद्ध और गंभीर हैं, यहाँ मैं कुछ अधिक प्रसिद्ध दोहों का संग्रह प्रस्तुत कर रहा हूँ | कुछ प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे। ये दोहे उनकी अद्वितीय धार्मिक और सामाजिक दृष्टि को दर्शाते हैं।
kabirdas ke dohe in hindi
- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय।। - दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करैं न कोय।
जो सुख में सुमिरन करैं, तो दुख काहे को होय।। - ज्ञानी को कूदा गुरु मारे, मूर्ख अंधा न होय।
अंधेरा गहन अंधेरा, गुरु मिले ता रोय।। - गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविन्द दियो बताय।। - कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।। - अवधु के गुन ना कहीये, एक खाली का ब्याह।
जिनका जलता घर देखो, वे चितकारे जगह।। - कबीरा अधम न बिसरै, जब लगुँ पाँव डार।
बहुरि न उतरै, जब आँगन समीचा आपु बार।। - कबीरा तेरा जग निराला, जीवे सागर की नाव।
ये तो सितगुरु की नाव है, इसमें कौन समाव।। - कबीरा तेरा मन ना फ़कीरा, जिसमें राम नाम नहीं।
अंतर की बात कबीरा, सब को बताय बिना।। - कबीरा सोई पीर है, जो जगत का मित्र होय।
वो हमको भी दिखाइ दे, राम द्वारे के नोए।। - पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।। - निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। - चाहे सुंदर बाँट न पाया, चाहे सुंदर चढ़ाय।
चाहे गरीब सो संतोषी, चाहे मानुष गर्वाय।। - माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कबीरा जो गुबार में धूंधे, मुझसे बुरा न कोय।। - कबीरा बड़ा खाने खान, ओजस को खावे।
जा तुरन्त भागेगा, भूख रहे दो नावे।। - कबीरा लाल मुख लगा, बूड़ा धार ना खाय।
अगुआ बिछूँवा कीजिए, बिना ना देखे जाय।। - कबीरा धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।। - गुरु बिना ग्यान न उपजै, गुरु बिना भिक्षा न मिलै।
गुरु बिना मन न लागै, गुरु बिना भैस न चलै।। - जो तो स्वान का भात है, वही बजा खाए।
आपे जीवन संवारे, यही जीवन न सजाए।। - कबीरा जिन्हे नाम बाँधा, बढ़िया बुराई से लरे।
जिन्हे सत्संग नहीं मिला, माया जिवित संसार में।। kabirdas ke dohe aur arth - सुख ताली मिले तो क्या, छापा धरे न कोय।
जो जीवन को परम सुख माने, वह सुख कहाँ होय।। - नींद मुसाफिर, खाना बाज़ार, जगत का आलसी सार।
कहे कबीर, बूझी न राती, राम नाम लिख रहे प्यार।। - कबीरा खड़ा बाजार में, बाजार बाजार खार।
जो चाहे लेलो माला, मुझसे बुरा न कोय।। - कबीरा अंधा न सब कोई, हां अंधेरा न जानै।
जो मुर्ख अंध भावै, सो नर बुद्धि बिखानै।। - ज्यों त्यों मन मिले न राम, त्यों त्यों मन होय उदास।
ज्यों त्यों मन मिले राम, त्यों त्यों मन होय प्रसन्न।। - कबीरा सोई बिगड़ी बात, बिगड़ी बात समझै।
बिगड़ा चित्त न बिगड़ै, जानत है जिस बात को।। - कबीरा तेरा मन निरमल, जितन बाप सोई।
अंतर की बात कबीरा, सब को बताय बिना।। - राम रतन धन पायो, अनेक जतन करि धारी।
जानत है मुरारि कृष्ण दस कबीर जन जहाँ भारी।। - कबीरा जहाँ नहीं विराग, वहा पर समाधि न होय।
जहाँ हैं समाधि ताही, जहाँ विराग रोय।। - कबीरा जिनके हृदय में राम, उनके हृदय शिवाले।
दिव्य गगन में बड़े, मानव में अवतार करे।। - बिगड़ी है जो बिगड़ै, भला कैसे बिगड़ै।
कहे कबीर कैसे बिगड़ै, जो पुरुष न जानै।। - गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गड़ा गड़ी दोनों में।
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाय।। - जैसे सोवै बैरी जल, बिना सोवे घन कोय।
जैसे सोवै गुन अग्नि, बिना सोवे गुन होय।। - कबीरा मन का मन्दिर, मखान चढ़ाए बिंदु।
मूर्ती मिली जग में, तो मगन चित भयो हिन्दु।। - रथ का निर्मल की बासी, सुभ भया गुदा राख।
जब लड़कों में ताति गंगा, जब लड़कियों में राधा खैं।। - जैसे सरस सुन्दर नर, धरी कठिन असार।
जैसे भुजंग लीली कुंडली, फिरि बैठत मार।। - बिगड़ा चाहे जो बिगड़े, लोगा न चुगा तोय।
कबीरा साहिब चाहिये, घड़े मुख में होय।। - गुरु बिन ग्यान न उपजै, ग्यान बिन मुक्ति न होय।
गुरु बिन लाखों पाठका, माने न धरी कोय।। - गुरु बिन भव सागर ना उतरे, गुरु बिन मूढ़ धरि खेल।
गुरु बिन दांडी भूख ना बुझे, गुरु बिन विधि न होय।। - कबीरा ना हरि के घाटे, ना हरि के मटेरे।
हरि मिले तो मिले सुधी, बहुरि क्या चाहे डेरे।। - बरबस गुरु न भाखिया, बाल न धरे पंजर।
ताति ताति न चलै बाहिया, निज घर की बिहर।। - कबीरा सब जग छाड़ के, जो तो मांगे प्यार।
वह तो सतगुरु की सेवा, जो तो मांगे सुधार।। - राम का नाम लो, मन में शांति होय।
मन में शांति होय, तन में सुख होय। - धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय। - राम नाम जपो, मन लागो राम नाम की बात।
राम नाम की मधुर मिरा, मुख में लागो राम नाम।। - अच्छा करिए, बुरा करिए, जैसे करने से तैसा।
चाहे जैसा होवे, निज कर्मा के फल का भाईसा।। - सच्चा तेरा दाम तुझमें, बाट बिगाड़े जाय।
कबीरा सौ संगत सोई, सागर का नाम नहिं।। - जैसे सुख दुख में नैनी दीन, तासो दुख में नैनी सात।
जब सुख में मन नहीं मानै, तासो मानै काहू किसात।। - राम बिना कैसे पावै, जिन राम रतन धार।
अंतर की बात कबीरा, बाहर कहै संसार।। - कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
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